The smart Trick of Shodashi That No One is Discussing
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श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१॥
इस सृष्टि का आधारभूत क्या है और किसमें इसका लय होता है? किस उपाय से यह सामान्य मानव इस संसार रूपी सागर में अपनी इच्छाओं को कामनाओं को पूर्ण कर सकता है?
सौवर्णे शैलशृङ्गे सुरगणरचिते तत्त्वसोपानयुक्ते ।
The essence of those rituals lies during the purity of intention along with the depth of devotion. It is far from basically the exterior actions but The inner surrender and prayer that invoke the divine existence of Tripura Sundari.
Inside the spiritual journey of Hinduism, Goddess Shodashi is revered to be a pivotal deity in guiding devotees towards Moksha, the ultimate liberation within the cycle of beginning and Loss of life.
शैलाधिराजतनयां शङ्करप्रियवल्लभाम् ।
Remember to explain to me this kind of yoga which may give salvation and paradise (Shodashi Mahavidya). You are the one theologian who can give me the whole expertise in this regard.
वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्री चक्रमेत दुदितं पर देवताया: ।।
Her Tale contains legendary battles in opposition read more to evil forces, emphasizing the triumph of fine over evil as well as the spiritual journey from ignorance to enlightenment.
लक्ष्या या चक्रराजे नवपुरलसिते योगिनीवृन्दगुप्ते
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥५॥
सर्वोत्कृष्ट-वपुर्धराभिरभितो देवी समाभिर्जगत्
Celebrations like Lalita Jayanti emphasize her importance, in which rituals and choices are made in her honor. The goddess's grace is considered to cleanse past sins and guide one particular in the direction of the ultimate target of Moksha.
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।